कितना अजीब है ना..
हर सुबह खुद से वादा करता हूं की तुम्हें याद नही करूंगा
पर ऐसी एक रात नही होती जिस रात तुम्हे याद ना करूं
वो बातें वो यादें हमारी सोच कर आंखें नम ना करूं
तुम थी तो सब सही था
तुम नही हो तो लगता है अब प्यार करने वाला ही नहीं है
बड़े प्यार से तुम मुझे “आप” कह कर पुकारती थी
अब तुम नहीं हो तो लगता है
कोई इज़्ज़त से बात करने वाला ही नहीं है
बस नगमें लिखता रहता हूं रातों में
जिसकी वजह से जिस्म को सांस मिल जाती हैं
मेरी खामोशी से लेकर चीखें बस तुम्हारा नाम पुकारे
पर क्यूं तुम्हें मेरी आवाज नहीं आती
अब तुम बदले बदले से लगते हो तुम जैसे थे अब वैसे नहीं हो
या सच यहीं है तुम्हारा तो कहो ना ऐसा झूठा दिखावा क्यों करते हो
बड़ी खुदगर्ज सी थी तुम
जब तक महसूस थी तुम्हे जरूरतें तुमने कभी जाने नही दिया
और आज तुम्हे लगा के मैं ख़ास नहीं हूं
तो एक बार मुड़के देखा भी नहीं
बातें कुछ और थी तुम्हारी और बात कुछ और
काश समझ लेता वो बात तुम्हारी
क्यूं उन आंखों में प्यार के साथ कुछ छिपा था
काश पढ़ लेता वो आंखें तुम्हारी
कितना अजीब है ना
खुद से कहता हूं के मैं तुमसे प्यार नहीं करता
पर ऐसी एक रात नही होती
जिस रात मैं तुम्हें याद नहीं करता
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